पता नही

पता नही हममें 
इतनी उम्मीद – ए – मुहब्बत 
किसने भर दी है ।

कोई नफरत के बीज भी बोये,
हम प्यार की फसल ही उगाते है ।
टूटती हुई शाखों पर भी 
घरौंदे बनाते है ।

और तो और
हमारी आंख से आँसू भी टपके
वो किसीके हमदर्द होने का अहसास ही जताते है ।

ना जाने किस मिट्टी से बने है हम 
कोई रौंद भी जाये
तो नया रूप धर कर दुबारा उठते है हम ।
और नफरत भी नही करते 
उन कुचलने वाले पैरों से ।

हमारी तादाद भी सराहनीय है 
हम जुडे है एक दुसरे से कुछ इस कदर 
तवारीख गवाह है,
हम रहे है एकसाथ और बेखौफ ।

कोई हमें कायर कहे 
या कहे मौजूदा से बेखबर 
हम भाषा जानते है सिर्फ प्यार की 
जिसने जिंदा रखा है हमें आजतक 

बाकी तो कुछ बचता नही कहने सुनने को ।   
हमारा यकीन है  हमारी  उम्मीद-ए-मुहब्बत पर। 

अभिप्राय 2

तुमचा अभिप्राय नोंदवा

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