मासिक संग्रह: जून, 2025

संपूर्ण अंक/ मराठी / हिंदी

मेंढा लेखा: जैव-सामाजिक प्रणाली विज्ञानाचा उत्कृष्ट नमुना!

मुख्य शब्द: जैव-सामाजिक प्रणाली (social-ecological system), बहुकेन्द्रित शासन (polycentric governance), अनुकूलन क्षमता (adaptation), स्वसंघटन (self-organization), संश्लेषण (synthesis), तंत्रविचार (systems thinking), एलिनोर ओस्ट्रॉम, Tragedy of Commons, सह-उत्क्रांती (coevolution), Panarchy, Anthropocene.

प्रस्तावना आणि विषय प्रवेश
गडचिरोलीतील मेंढा-लेखा गावात झालेला ग्रामस्वराज्याचा विलक्षण प्रयोग, आणि एकंदरच विकेंद्रीकरणाच्या धोरणांमुळे जेव्हा माणसांच्या समूहांमध्ये स्व-संघटन[A] होऊन काहीतरी नव-सर्जन घडते, ते बघून मानवी मन सुखावते, आनंदी होते. असे सर्जन बघून मन का सुखावते? गोष्ट मेंढा गावाची[1] ह्या पुस्तकात मिलिंद बोकील लिहितात – “विज्ञानाने आणि तंत्रज्ञानाने प्रगती झाली असली तरी मानवी जीवन स्वस्थ आणि सुरक्षित नाही.

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युवकांनी ग्रामसभेत सहभाग वाढवावा…

‘आजचा सुधारक’च्या अंकासाठी ग्रामस्वराज्य हा विषय हातात आला त्याच्या आठच दिवसांआधी, मी राहतो त्या परिसरातल्या एका गावात मोठा इतिहास झाला होता. गट-ग्रामपंचायत असलेल्या त्या गावच्या सरपंचाविरोधात अविश्वास ठराव मंजूर झाला होता. कारण गावकऱ्यांना न पटणाऱ्या काही मोठ्या घडामोडी गावात घडल्या होत्या. ग्रामपंचायतीच्या सरपंचपदाच्या शर्यतीत असलेल्या उमेदवाराने वस्तीवरच्या गावकऱ्यांना पाणी पिण्यासाठी निवडणुककाळात पाईप आणून दिले होते. परंतु निवडणूक संपल्यानंतर वस्तीवरच्या लोकांना पाणी भरण्यासाठी दिलेले पाईप परत मागितले. नंतर दोन महिन्याने वस्तीशेजारी असणाऱ्या भेंडगावच्या एका शेतकऱ्याला वस्तीवर राहणाऱ्या नागरिकांची कीव आली आणि त्याने त्याच्या शेतीतल्या विहीरीचं पाणी देण्याचे ठरवले.

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पंचायती राज: ३० साल में कितना मजबूत हुआ लोकतंत्र?

पार्श्वभूमि

  • तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के ३० से अधिक साल पूरे हो गए हैं। साल १९९२ में संविधान में संशोधन के साथ इस पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत हुई थी।
  • ७३वें संशोधन की वजह से आदिवासी क्षेत्रों (अनुसूचित क्षेत्रों) में पंचायती राज के विस्तार और वन अधिकारों के लिए कानून बने।
  • अपनी टिप्पणी में सी आर बिजॉय लिखते हैं कि लोकतंत्र को बिना मजबूत किये सत्ता के विकेन्द्रीकरण की ३० वर्षों से अधिक की यह कहानी आशा से निराशा की तरफ जाती है।

भारत में लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करने के लिहाज से साल १९९२ को मील का पत्थर माना जाता है। तीन दशक पहले इसी साल संविधान में ७३वां (पंचायती राज के लिए) और ७४वां (नगरपालिका और शहरी स्थानीय निकायों के लिए) संशोधन किया गया था। आज़ादी के बाद राजनीतिक लोकतंत्र को आखरी पायदान तक ले जाने की दिशा में यह पहला ऐतिहासिक कदम था। इन संशोधनों का मकसद संविधान के अनुच्छेद ४० को हकीकत में बदलना था। संविधान का अनुच्छेद ४० नीति निदेशक सिद्धांतों में से एक सिद्धांत को समेटे हुए है और इसमें राज्य को ग्राम पंचायतों के गठन और पावर देने का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि राज्य न केवल ग्राम पंचायत को संगठित करे बल्कि इतनी शक्ति और अधिकार दे कि वे स्वशासन की एक इकाई के रूप में कार्य कर सकें।

लेकिन सामंती सोच वाले शासक वर्ग को ये भरोसा करने में चार दशक लग गए कि लोग खुद से खुद पर शासन कर सकते हैं। दरअसल, तब शासक वर्ग, कमांड और कंट्रोल लाइन पर बहुत ज्यादा निर्भर था। स्वतंत्रता के वक्त भारत को औपनिवेशिक प्रशासन के तरीके विरासत में मिले थे। इन तरीकों को ईजाद ही इसलिए किया गया था कि एक गुलाम देश और उसके लोगों पर आसानी से शासन किया जा सके। 

आजादी के संघर्ष में यह खयाल भी शामिल था कि भविष्य में शासन करने के इन तरीकों का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।

अतीत की बातें 

प्राचीन काल से ही भारत में ‘लोकतांत्रिक’ संस्थाओं का लंबा इतिहास रहा है। साझा संप्रभुता के आधार पर जुड़े इस समाज में, शक्ति और अधिकार का बंटवारा कुछ ऐसा रहा है कि गांव, स्वशासी ग्राम गणराज्य के रूप में कार्य करते रहे हैं।

भारत के कार्यवाहक गवर्नर-जनरल (१८३५-३८) चार्ल्स टी.

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मानव-वन्यजीव संघर्षातून सहवासाकडे!

ग्रामस्वराज्याविषयी बोलताना वनहक्क, वनउत्पादने, गौण खनिजे ह्यांच्याविषयी जितके बोलले जाते, तितके आदिवासी-वन्यजीव ह्यांमधील परस्परसंबंधांविषयी बोलले जात नाही. परंतु वन्यजीव संरक्षण आणि संवर्धनासाठी बनलेले/असलेले कायदे आणि त्यांची योग्यायोग्यता हाही एक चर्चेचा विषय आहेच. वन्यप्राण्यांशी असलेल्या आदिवासींच्या संबंधांकडे कायदा कसे बघतो ते समजून घेण्यासाठी लेखकद्वयाने केलेले प्रयास त्यांच्याच शब्दांत…

उपोद्घात
आजघडीला स्थानिक ते देशपातळीवर मानव व वन्यजीव संघर्षाने उग्र रूप धारण केले आहे. कधीकाळी आपल्याकडे मानव व वन्यजीव ह्यांचे सहचर्य होते. सजीव सृष्टीतील सर्व प्राणिमात्र व मानव ह्यांचे अद्वैत सांगणारी भारतीय परंपरा व तिला जोडलेले तत्त्वज्ञान आजही तेच सांगते.

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आदिवासी स्वशासन

महात्मा गांधी ने ‘हिन्द स्वराज’ के द्वारा सत्ता के विकेंद्रीकरण को दृष्टि दी थी, क्योंकि उन्हें गाँव, लोग, उनकी सामुदायिक समझ और प्राकृतिक संसाधनों के तालमेल का अनुमान था. इस नजरिये को आगे बढ़ाते हुए जवाहरलाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद आदिवासी समुदायों के कल्याण और विकास के समग्र दृष्टिकोण के तहत आदिवासी स्वशासन के पाँच सूत्र दिए. इन्हें ‘आदिवासी पंचशील’ के रूप में भी जाना गया. २ अक्टूबर, १९५४ को मुख्यमंत्रियों को उन्होंने एक पत्र लिखकर इन पाँच सूत्रों को अमल में लाने का सुझाव दिया: 

पहला, आदिवासी समुदायों की संस्कृति व पहचान का सम्मान किया जाए.

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